अग्नि तत्व

अग्नि तत्व के देवता सूर्य देव बताये गए है. अग्नि से हमारा स्वास्थ्य संबंधित होता है. निरोगी काया के लिए भगवान सूर्य की स्थापना करें।

अग्नि से जल की उत्पत्ति मानी गई है। हमारे शरीर में अग्नि ऊर्जा के रूप में विद्यमान है। इस अग्नि के कारण ही हमारा शरीर चलायमान है। अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोगी रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है।

शरीर की ऊर्जा का दूसरा स्रोत अग्नि है।

अग्नि तत्व देखने की शक्ति प्रदान करता है।

अग्नि सीमित हो मनुष्य के विवेक को दर्शाती है।

अगर अग्नि तत्व शरीर में अधिक हो तो मनुष्य के क्रोध (गुस्सा कंट्रोल करने के लिए वास्तु उपाय) को दिखाती है।

आदिकाल से ही सुरक्षा के लिए अग्नि का प्रयोग किया जाता रहा है। जीवन में चिंगारी, वास्तविक और जुनून का प्रतिनिधित्व यह तत्व करता है। अग्नि तत्व का संबंध वर्ममान समय में सभी प्रकार की लाइटों (प्रकाश) की शक्ति है। इसलिए इसे आधुनिक संदर्भ में पैसे के बराबर माना जाता है। अग्नि तत्व आपके जीवन को आत्मविश्वास और उत्साह के साथ बदल सकता है। अग्नि तत्व की दिशा दक्षिण-पूर्व होती है। अग्नि तत्व के देवता सूर्य देव व मंगल हैं। मेष, सिंह व धनु राशि अग्नि तत्व की राशियां हैं। ऐसे व्यक्तियों के स्वभाव में उग्रता देखने को मिल सकती है।

संसार के इन पांच तत्वों में अग्नि को सबसे प्रभावशाली और विनाशकारी शक्ति माना जाता है. अग्नि तत्व ऊर्जा, ताप और प्रकाश का प्रतीक है. हिंदू धर्म में अग्नि को उच्च कोटि का देवता माना गया है.

मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक अग्नि देव बहुत महत्व रखते हैं. शुभ कार्यों में अग्नि देव के रूप में हवन किया जाता है, पूजा-पाठ में दीपक प्रज्वलित करने के लिए अग्नि बहुत जरुर है.

शादी विवाह में अग्नि के ही समक्ष सात फेरे लिए जाते हैं. इसे ही साक्षी मानकर वर-वधू सात जन्मों के बंधन में बंधते हैं क्योंकि अग्नि को बहुत पवित्र माना गया है.

अंतिम समय में यानी कि दाह संस्कार में भी अग्नि की आ‌वश्यकता होती है. हिंदू मान्यता के अनुसार अग्नि को चिता में प्रज्वलित करने के बाद ही मृतक को शांति मिलती है अग्नि तमाम पापों का नाश कर सभी चीजों को स्वीकार करती है.

देवी-देवताओं तक अपनी प्रार्थना और उन्हें भोज्य समाग्री पहुंचाने का एकमात्र रास्ता है. दिव्य ज्योति के रूप में व्यक्ति ईश्वर का आव्हान करता है. कहते हैं जहां ज्योत जलती है वहां स्वंय भगवान मौजूद रहते हैं, ये अग्नि द्वारा ही संभव है. वहीं यज्ञ और हवन के जरिए व्यक्ति देवी-देवताओं को विशेष सामग्री पहुंचाता है. अग्नि के जरिए ही देवतागण हवन सामग्री ग्रहण करते हैं.

शास्त्रों में अग्नि के 49 प्रकार बताए गए हैं, हर एक काम के लिए अग्नि का अपना महत्व होता है. बिना अग्नि के सृष्टि का पालन और संहार दोनों संभव नहीं है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी माने गए हैं.