वृक्षारोपण नर्मदा तट
माँ नर्मदा ने अब तक हमें बचाया है।अब समय आ गया है कि हम माँ नर्मदा को बचायें एवं नर्मदा नदी के दोनों तटों पर वृक्षारोपण करें ।
यह विश्व सुरक्षित रहे, यह पृथ्वी भारत मे जिसे माँ कहा गया है उसका संरक्षण, उसका संवर्धन हर पीढ़ी का दायित्व है। हमारे पूर्वजो ने हमारे लिये जो किया हमारी जिम्मेदारी है कि आगे आने वाली पीढ़ी के लिये हम कुछ करके जाये।
"नर्मदा मैया जीवन दायिनी है। नर्मदा मे जल हमेशा से ही विन्ध्यांचल एवं सतपुडा के घने जंगलो से आता है। इन जंगलों मे वृक्ष कम हो रहे है जिसका असर नर्मदा मे जलधारा पर पड़ रहा है। नर्मदा के दोनो तटों पर भूमि एवं खेतों मे पौधे लगाना है।नर्मदा नदी के द्वारा लाखों आदिवासियों, वन अंचल के वनवासियों, ग्रामीणों एवं किसानों का जीवन यापन होता है। नर्मदा नदी के दोनों तटों पर वृक्षारोपण किया जाना है ताकि रोपित पौधों से जल संवर्धन एवं मृदा संरक्षण का कार्य किया जा सके ।
आओ हम सब मिलकर संकल्प करें की नर्मदा के दोनो तटों को वृक्षारोपण के माध्यम से और अधिक हराभरा एवं समृद्ध बनायें।
नर्मदा के कटाव को रोकने तटों पर कर रहे पौधरोपण
किनारों में हो रहे कटाव और अचानक आती बाढ़ के द्वारा होने वाले विनाश को कम करने के लिए वृक्षारोपण करना
नर्मदा जलग्रहण क्षेत्र के वन प्रभावित हो रहे हैं, जिससे भविष्य में नर्मदा जलधारा की निरंतरता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। नर्मदा नदी "मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है", के जल को प्रदूषण रहित एवं निरंतर बनाये रखने की दृष्टि से नर्मदा नदी के दोनों तटों पर वृहद् स्तर पर वृक्षारोपण करने का लक्ष्य रखा , प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए पेड़-पौधे लगाना बहुत ज़रूरी है। पेड़-पौधों के माध्यम से प्रकृति सभी प्राणियों पर अनंत उपकार करती है। पेड़-पौधे हमें छाया प्रदान करते हैं। फल- -फूलों की प्राप्ति भी हमें पेड़-पौधों से ही होती है। पेड़-पौधों से हमें ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है, जो हमें जीवित रखने के लिए बहुत आवश्यक है। कई पेड़-पौधों की छाल औषधि बनाने के भी काम आती है। पेड़-पौधों की सूखी पत्तियों से खाद भी बनती है। पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं, अतः हमें पेड़-पौधे नहीं काटने चाहिए। आज हम अपने लालच के लिए पेड़-पौधे काटकर अपने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचा रहे हैं। इससे पक्षियों के घर उजड़ रहे हैं। तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है। वृक्ष काटने से ही बाढ़, भूमि-स्खलन आदि होते हैं।
इसीलिए वृक्षारोपण करना आवश्यक है इसके कही सारे लाभ हमारे जीवन में होते हैं।
वृक्ष, तेज हवा से फसल की रक्षा, शुष्क हवा को आर्द्र हवा में बदल कर फसल की रक्षा, खेत की नमी में वृद्धि, किसान के मित्र जीवों संरक्षण में सहयोग एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि व प्रकाष्ठ उत्पादन कर आय में वृद्धि करते हैं ।
पेड़ पौधे हमेशा दूसरों के लिए ही करते है जैसे पेड़ पौधे हमे फल, फूल ,हवा ,जड़ी बूटियां देते है।
लेकिन वो खुद के लिए कुछ नही करते लेकिन उनको जीवन देना हमारा काम है अगर आज हम उनको जीवन नही देगे तो वो हमें कैसे जीवन देगे ठीक उस तरह ही हमे भी दुसरो को जीवन देना चाहिए न कि उनका जीवन छीन लेना चाहिए।
नर्मदा नदी का सनातन धर्म में विशेष स्थान है। देवों के देव महादेव की पुत्री हैं नर्मदा। नर्मदा पुराण के अनुसार शिव से नर्मदा की उत्पत्ति हुई है। इसलिए वे शिव की पुत्री हैं। नर्मदा के अनेक नाम है, लेकिन इनमें शांकरी, रुद्रदेह, रेवा प्रमुख नाम है। वायुपुराण के अनुसार तांडव नृत्य करते समय शिव का जो पसीना निकला वह नर्मदा के रूप में प्रवाहित हुआ। वहीं स्कंद पुराण के अनुसार शिव की तपस्या के दौरान निकले पसीने की बूंद से नर्मदा की उत्पत्ति हुई है। नर्मदा की उत्पत्ति माघ शुक्ल सप्तमी को हुई थी। इसलिए इस दिन नर्मदा जयंती मनाई जाती है। नर्मदा पुराण के अनुसार गंगा में स्नान करने से जो फल मनुष्य को मिलता है वह मां नर्मदा के दर्शन मात्र से ही मिल जाता है। नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है। यहां छोटी सी धारा के रूप में मां नर्मदा प्रवाहित हुई हैं। इसके बाद उनकी धारा नदी में बदल गई। नर्मदा नदी सभी नदियों में सबसे पवित्र मानी गई हैं। नर्मदा का हर कंकर शंकर कहलाता है। नर्मदा के तट पर ओंमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी हैं।
मेकल पर्वता से मेकलसुता नाम पड़ा: नर्मदा की जब उत्पत्ति हुई तब मां नर्मदा का आवेग इतना था कि कोई पर्वत उनके आवेग को नहीं झेल रहा था। तब विंध्यपुत्र मेकल ने आवेग को अपने ऊपर धारण किया। इसलिए नर्मदा का नाम मेकलसुता भी है।
नर्मदा की होती है परिक्रमा: सभी नदियों में सिर्फ नर्मदा ही ऐसी हैं जिनकी परिक्रमा की जाती है। अन्य किसी भी नदी की परिकमा नहीं होती है। अमरंकटक से गुजरात तक 1312 किमी में नर्मदा बहती है। मप्र में नर्मदा 1077 किमी बहती है। नर्मदा की 41 मुख्य सहायक नदियां हैं। इसमें सबसे लंबी प्रवाह वाली नदी हिरन नदी और तवा नदी मप्र में ही है।
प्राचीनकाल से ही भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में बहुत सी नदियाँ हैं। भारत में नदियों का
महत्व ऋग्वैदिक काल से ही अधिक है। इन सभी नदियों का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। बहुत सी नदियों से धार्मिक गाथाएं जुडी हुयी हैं, जो कि धार्मिक व सामाजिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का जमाव नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है| आईये जानते है, कि भारत में कितनी नदियाँ है, और उनकी सूची के बारें में|
भारत की नदियों को चार समूहों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है – –
हिमालय की नदियाँ
प्रायद्वीपीय नदियाँ
तटीय नदियाँ
अन्तःस्थलीय प्रवाह क्षेत्र की नदियाँ
सनातन धर्म में प्रकृति का बहुत अधिक महत्व है। भगवत गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है कि सृष्टि के कण-कण में ईश्वर का वास है। इसलिए सभी प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। नदियां भी प्रकृति का एक अभिन्न अंग हैं। भारत में नदियों को देवी का दर्जा दिया जाता है। गंगा, यमुना,गोदावरी,नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, जैसी कई पवित्र नदियों को माता का दर्जा दिया गया है।
नदी में स्नान करने को पुण्यदायी माना गया है। इससे व्यक्ति को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही तन और मन शुद्ध होता है। नदी में स्नान से अंतर्मन शांत होता है और व्यक्ति के दोष दूर होते हैं। नदी में स्नान करने से आरोग्य जीवन मिलता है। साथ ही इससे नकारात्मक ऊर्जा आपसे दूर रहती है। मान्यताओं के अनुसार, नदी में स्नान करने से ग्रहों की दशा में भी सुधार होता है।