स्काई हेल्प ऑर्गेनाजेशन की स्थापना 2015 में कई गई
स्काई हेल्प ऑर्गेनाजेशन एक भारतीय विकास संगठन है, किन्नर समाज के लिए कार्य कर रहे है और किन्नर समाज को धर्म मे अपनी जगह दिलाई और किन्नर अखाड़े का गठन किया 2016 में और आज किन्नर अखाड़ा देश और दुनिया मे धर्म मे अपना एक स्थान बना चुका है साथ नर्मदा के तट पर वृक्षारोपण का कार्य चल रहा है जंगल,जल,जीवन (जंगल है तो जल है जल है तो जीवन है )
इसकी साथ पूरी दुनिया मे ग्लोबल वार्मिग के कारण सम्पूर्ण विश्व मे गर्मी का स्तर बढ़ते जा रहा है जिस से पूरे विश्व मे इसके ऊपर विचार और कार्य चल रहा तो मेरा विचार भी इस दिशा में कार्य करने का मन बना है।
मैने माँ नर्मदा जी पद यात्रा परिक्रमा की तो वहां जो माँ तट है उनके किनारे वृक्षारोपण करने से माँ नर्मदा जी को और माँ के जंगल को भी बचा सकते है सभी जानते है माँ नर्मदा जीवन दायनी है सबसे पहले वृक्षारोपण का कार्य नर्मदा तट से प्रांरभ कर नर्मदा क़ा जो तट बड रहा है भूमि का कटाव हो रहा है उसको भी बचाया जा सकता है और जंगल भी बनाया जा सकता जी से जंगल जल और जीवन ये अभी कार्य पूर्ण होंगे
और पर्यावरण जंगल को बचाने को बचाने प्रयास नर्मदा नदी की तट वृक्षारोपण का कार्य करके प्रयास किया जा रहा है हमारे पास नर्मदा तट के 03 राज्यों के सेकड़ो से अधिक दूरदराज के गांवों और शहरी बस्तियों से लोग जुड़े है
स्काई हेल्प ऑर्गेनाजेशन की शुरुआत 2015 में हुई थी जब कुछ दोस्तों का एक समूह समाज को कुछ वापस देने के इरादे से एक साथ आया था। वहां से स्काई हेल्प ऑर्गेनाजेशन स्थापना की संस्थापक श्री दुर्गा दास चड़ोकार के विचार और दर्शन से प्रेरित थे, सामाजिक समानता और पर्यावरण,जंगल जल जीवन,और सेवाओ की सेवा समस्याएं हैं..." जिन के समाधान के लिये हर प्रयास में कार्यरत रहते है और सभी से सहयोग की अपेक्षा रखते ह
उत्साह से भरकर स्काई हेल्प ऑर्गेनाजेशन के संस्थापकों ने अपने सपने को आकार दिया एक स्थायी भारतीय सामाजिक संस्था के रूप में विकसित हुई है - जो ज़मीन पर वास्तविक काम करने और परिवर्तन लाने की प्रक्रिया में समाज और प्रकृति को समावेशी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
अपने रास्ते में, हमें कई कठिन विकल्प चुनने पड़े और लगातार कुछ नया करना पड़ा - चाहे वह सेवाओ की सेवा हो प्रकुति से जुड़ी समस्या जो मानव उतपन की गई दृष्टिकोण के माध्यम से जमीन पर काम करना हो, प्रबंधन सिद्धांतों का अभ्यास करना हो और विकास क्षेत्र में जैसा दृष्टिकोण अपनाना हो, एक अद्वितीय संसाधन बनाना हो या नागरिक संचालित परिवर्तन की अवधारणा को बढ़ावा देना।
सेवा का भाव प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। सनातन धर्म में तो सेवा को धर्म का सार बताया गया है। प्राणी मात्र और प्रकृति की सेवा का भाव सनातन धर्म की पूजा पद्धति और मान्यताओं में समाहित है।
इनमें मानव की सेवा माधव (भगवान) की सेवा के समतुल्य मानी गई है। कहा जाता है मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले अधर। नि:संदेह सेवा मानव की ऐसी सवरेत्तम भावना है, जो उसे पूर्णता प्रदान करती है। सेवाभाव ही मानव जीवन का वास्तविक सौंदर्य और श्रृंगार है। सनातन धर्म में कर्म की प्रधानता पर बल दिया जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। इसके अलावा व्यक्ति के कर्मों का प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है अतः मानव जाति को प्रकृति तथा उसके विभिन्न जीवों की रक्षा करना चाहिये।