आकाश तत्व
आकाश तत्व के स्वामी विष्णु भगवान है आकाश तत्व प्रेम से संबंध रखता है.
आकाश एक ऐसा तत्व है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु विद्यमान है। यह आकाश ही हमारे भीतर आत्मा का वाहक है। इस तत्व को महसूस करने के लिए साधना की जरूरत होती है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी सुख, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान हैं
मानव शरीर में मौजूद आकाश तत्व शरीर का संतुलन बनाने का काम करता है।
व्यक्ति के मुंह में वाणी का और दिमाग में शब्दों का निर्माण आकाश तत्व से ही होता है।
आकाश तत्व का सीधा और सरल अर्थ बताएं तो इसका नाता व्यक्ति के मन से होता है।
मन में भावनाएं और दिमाग में विचार इसी तत्व के कारण आते हैं।
वास्तु शास्त्र में आकाश तत्व ऐसी वस्तुओं को संदर्भित करता है जिसने सीमाओं को परिभाषित किया जात है। यह कनेक्टिविटी के लिए एक माध्यम प्रदान करता है। यह विस्तार, वृद्धि, विस्तार, प्रसार, संचार और विचार प्रक्रियाओं (मानसिक स्थान) का प्रतिनिधित्व करता है। नए विचारों, भावनाओं का निर्माण, ज्ञान का विकास, रिश्ते, आनंदमय वैवाहिक जीवन, खुशी में वृद्धि, सूचना में वृद्धि, व्यापार, प्रणाली, समर्थन, शक्ति (शारीरिक, भावनात्मक और वित्तीय), और समग्र - अंतरिक्ष तत्व द्वारा नियंत्रित होते हैं। अंतरिक्ष पश्चिम दिशा पर हावी है। यह तत्व व्यक्ति को सुनने की क्षमता प्रदान करता है|
आकाश-तत्त्व की व्याख्या करते हुये महर्षि वशिष्ठ लिखते हैं-
चिंताकाशं चिदाकाशं माकाशं च तृतीयकम्। दाभ्याँ शून्यतरं विद्धि चिदाकाशं वरानने
देश देशान्तर प्राप्तौ सविदो मध्यमेव यत्। निमेषेण चिदाकाश तद्विद्धि वस्वर्णिनि ॥
तस्मिन्निरस्तनिः शेषसंकल्पस्थिति मेषि चेत्। सर्वात्मकं पदं तत्वं तदाप्नाष्यसशयम्॥
चित्ताकाश चिदाकाश याकाश च तृतीयकम्। विद्दयेतत्मयमेकं त्वमविनाभावनावशात्॥
अर्थात्-आकाश नाम का व्यापक तत्त्व आकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश तीन रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। चिदाकाश जो ज्ञान का आश्रय है सबसे सूक्ष्म है। एक विषय से दूसरे विषय की प्राप्ति के मध्य में क्षण भर का जो अवकाश अनुभव में आता है वह चिदाकाश ही है। केवल वही संकल्प रहित है उसमें स्थिर हो जाने से आत्मा परम तत्त्व या परमपद की प्राप्ति होती है। यह तीनों आकाश एक ही तत्त्व के त्रिगुणात्मक रूप हैं।
आकाशतत्त्व के उपरोक्त विश्लेषण से यह पता चलता है कि ईश्वरीय सत्ता के सबसे समीप तत्त्व आकाश ही है उसमें विराट् जगत् की सर्व व्यापकता समाहित है। अयन मण्डल की खोजों के परिणाम स्वरूप जो निष्कर्ष सामने आये हैं उनमें से भी ऐसे ही अनेक रहस्यों का उद्घाटन होता चला आ रहा है। अयन मण्डल बृहस्पति पर वलय की भाँति पृथ्वी को सभी ओर से घेरे हुये हैं या यों कहें हम हमारी पृथ्वी आकाश में स्थिति है। इस आयन मण्डल (आयनोस्फियर) में विद्युत कणों की अनेक नियमित-अनियमित परतें हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार भी उनमें से तीन प्रमुख हैं। इन परतों को एयल्टन ने "ई", "एफ" और "डी" परतों का नाम दिया। धरती की ऊँचाई पर जहाँ वायुमण्डल का दबाव कम है वहाँ विचरण करने वाले अणु और परमाणु अपने अणु (इलेक्ट्रान) खो देते हैं। इलेक्ट्रानों के तोड़ने की यह क्रिया सूर्य सम्पन्न करता है-यह क्रियाशीलता जिस सीमा तक तीव्र होती है, अयन मण्डल उतनी ही तीव्रता से पृथ्वी में जलवायु आदि का नियन्त्रण करता है। यही नहीं वह लोगों के मन, हृदय और गुणों को भी प्रभावित करता है। यह कार्य वह केन्द्रक शक्ति करती है जो इलेक्ट्रान के खो जाने के पश्चात् शेष रहती है। इसी से पता चलता है कि केन्द्रक- कोई मनोमय शक्ति है।