नर्मदा परिक्रमा

आईये जानते है, कि भारत में कितनी नदियाँ है, और उनकी सूची के बारें में|

वैसे तो संसार मे बहुत नदियां हैं, पर नर्मदाजी के सिवा किसी भी नदी की प्रदक्षिणा (परिक्रमा)करने का प्रमाण नहीं देखा गया है। ऐसी नर्मदाजी अमरकंटक से प्रवाहित होकर रत्नासागर में समाहित हुई है और अनेक जीवों का उद्धार भी किया है। प्रतिवर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को पुण्यदायिनी मां नर्मदा का जन्मदिवस 'नर्मदा जयंती महोत्सव' के रूप में मनाया जाता है।

युगों से हम सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, हम इसका सम्मान और पूजन करते हैं। ऐसे में कोई शक्ति अजर-अमर होकर लोकहित में अग्रसर रहे तो उनका जन्म कौन नहीं मनाएगा।

एक समय सभी देवताओं के साथ में ब्रह्मा-विष्णु मिलकर भगवान शिव के पास आए, जो कि (अमरकंटक) मेकल पर्वत पर समाधिस्थ थे। वे अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत-सहज समाधि में बैठे थे। अनेक प्रकार से स्तुति-प्रार्थना करने पर शिवजी ने आंखें खोलीं और उपस्थित देवताओं का सम्मान किया।

देवताओं ने निवेदन किया- हे भगवन्‌! हम देवता भोगों में रत रहने से, बहुत-से राक्षसों का वध करने के कारण हमने अनेक पाप किए हैं, उनका निवारण कैसे होगा आप ही कुछ उपाय बताइए। तब शिवजी की भृकुटि से एक तेजोमय बिन्दु पृथ्वी पर गिरा और कुछ ही देर बाद एक कन्या के रूप में परिवर्तित हुआ। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेक वरदानों से सज्जित किया गया।

'माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।

मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥'

माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया।

तब नर्मदाजी प्रार्थना करते हुए बोली- 'भगवन्‌! संसार के पापों को मैं कैसे दूर कर सकूंगी?'

तब भगवान विष्णु ने आशीर्वाद रूप में वक्तव्य दिया-

'नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव।

त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः।'

- अर्थात् तुम सभी पापों का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव-तुल्य पूजे जाएंगे।

तब नर्मदा ने शिवजी से वर मांगा। जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है, उसी प्रकार से दक्षिण गंगा के नाम से प्रसिद्ध होऊं।

शिवजी ने नर्मदाजी को अजर-अमर वरदान और अस्थि-पंजर राखिया शिव रूप में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया। इसका प्रमाण मार्कण्डेय ऋषि ने दिया, जो कि अजर-अमर हैं। उन्होंने कई कल्प देखे हैं। इसका प्रमाण मार्कण्डेय पुराण में है।

नर्मदाजी का तट सुर्भीक्ष माना गया है। पूर्व में भी जब सूखा पड़ा था तब अनेक ऋषियों ने आकर प्रार्थनाएं कीं कि भगवन्‌ ऐसी अवस्था में हमें क्या करना चाहिए और कहां जाना चाहिए? आप त्रिकालज्ञ हैं तथा दीर्घायु भी हैं।

तब मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि कुरुक्षेत्र तथा उत्तरप्रदेश को त्याग कर दक्षिण गंगा तट पर निवास करें। नर्मदा किनारे अपनी तथा सभी के प्राणों की रक्षा करें।

नर्मदा जी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और तेरह दिनों में पूर्ण होती है। अनेक देवगणों ने नर्मदा तत्व का अवगाहन ध्यान किया है। ऐसी एक मान्यता है कि द्रोणपुत्र अभी भी माँ नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। इन्हीं नर्मदा के किनारे न जाने कितने दिव्य तीर्थ, ज्योतिर्लिंग, उपलिग आदि स्थापित हैं। जिनकी महत्ता चहुँ ओर फैली है। परिक्रमा वासी लगभ्ग तेरह सौ बारह किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। श्री नर्मदा जी की जहाँ से परिक्रमावासी परिक्रमा का संकल्प लेते हैं वहाँ के योग्य व्यक्ति से अपनी स्पष्ट विश्वसनीयता का प्रमाण पत्र लेते हैं। परिक्रमा प्रारंभ् श्री नर्मदा पूजन व कढाई चढाने के बाद प्रारंभ् होती है।

इसलिए शास्त्रों के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का ही बहुत ही अधिक महत्व है।

1) हमारे पास 18 पुराण हैं और केवल नर्मदा पुराण नदी के रूप में कोई अन्य नदी पुराण नहीं है।

2) नर्मदा का अर्थ है मुस्कान और दे का अर्थ है देने वाली, वह हमेशा मुस्कान देती हैं।

3) नर्मदा शिव की बेटी हैं और शिव उनके जन्म पर बहुत खुश थे।

4) भारत की सभी नदियाँ अपने उद्गम से दक्षिण की ओर बहती हैं, केवल नर्मदा पश्चिम की ओर जाकर समुद्र में मिलती हैं।

5) किसी अन्य नदी में स्नान करने से मोक्ष होता है, लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से भी मोक्ष हो जाता है।

6) विभिन्न प्रकार के बाण (पूजा में प्रयुक्त) भारत में नर्मदा के कुछ भागों में ही पाए जाते हैं।

7) नर्मदा ने अब तक कितनी ही बाढ़ें अपने किनारों से बहाई हों, उसने कभी नुकसान नहीं पहुँचाया, अब पावेटो की सीमा में है।

8) यह वरदान है कि प्रचंड बाढ़ के बाद भी नर्मदा गायब नहीं होगी।

9) नाग राजाओं ने मां नर्मदा को यह वरदान दिया था कि नर्मदा नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति भी होगी

10) मां नर्मदा के हर कंकड़ को भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है। इनकी प्राण प्रतिष्ठा कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

11) नर्मदा की परिक्रमा करते समय इसके तट पर आटा, काटा (जलने वाली लकड़ी) और भाटा (पत्थर) की कोई कमी नहीं होती है, इसलिए परिक्रमा के दौरान कोई भी भूखा नहीं रहता है।

12) नर्मदा जयंती (रथ सप्तमी) पर सभी महान नदियाँ उसमें स्नान करती हैं और लोगों के स्नान से संचित सभी पापों को धो देती हैं।

13) भारत में अधिकांश योगियों, सन्यासियों ने नर्मदा में अपने शरीर को समर्पित कर जल समाधि ले ली है।

14) भारत में अधिकांश संत महंतों के आश्रम नर्मदा के तट पर स्थित हैं और सेवा प्राधिकरण/ट्रस्ट हजारों वर्षों से बिना किसी अपेक्षा के पैदल परिक्रमा कर रहे भक्तों की देखभाल कर रहे हैं।

15) परिक्रमा में आज भी नर्मदा में स्नान करने और स्वयं का जल पीने से पेट और चर्म रोग पूरी तरह से गायब होने के उदाहरण मिलते हैं।

16) यह परिक्रमा आज भी हजारों भक्त करते हैं, मैय्या एक मां से ज्यादा उनका ख्याल रखती हैं, बस जरूरत है परिक्रमा के हमारे दृढ़ संकल्प की।

17) सच्चे मन से मां नर्मदा की परिक्रमा करने से मां नर्मदा अपने भक्तों के सभी दुखों को हर लेती है।

18) एक बार नर्मदा परिक्रमा पूर्ण करने के बाद इंसान का जीवन हर्ष और उल्लास से भर जाता है।

19) नर्मदा में मृत व्यक्ति की अस्थियां डालने से ये अस्थियां पत्थरों में तब्दील हो जाती हैं।

20) नर्मदा के किनारे आज भी कई अदृश्य शक्तियां और देवता नर्मदा की परिक्रमा करते रहते हैं।

21) मान्यता ये भी है कि गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अस्वत्थामा आज भी नर्मदा की परिक्रमा कर रहे

22) मां नर्मदा को वेदों में वैराग्य की अधिष्ठात्री माना गया है।

23) यदि आप किसी भी कष्ट या समस्या से जूझ रहे है तो जातक को नर्मदा स्नान करते रहना चाहिये, और यदि आप आने जाने में असमर्थ हो तो माँ नर्मदाष्टक जरूर पढ़ना चाहिए। इससे माँ नर्मदे की विशेष कृपा होती हैं और जातक मुसीबत से जल्दी निकल जाता है।

नर्मदा जी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। ऐसा बताया गया है कि गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्र तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वती विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है और श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोड़ता है। और जल का प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है।

नर्मदे हर...... नर्मदे हर....... नर्मदे हर.....

Maa Narmada
Maa Narmada