गो सेवा

गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है।

12/29/20231 min read

शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गङ्गा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गङ्गा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।

हिंदू सनातन धर्म में गाय को संसार का सबसे पवित्र प्राणी कहा गया है। जब पृथ्वी पर जीवन उत्पन्न नहीं हुआ था उससे भी पहले से गाय इस ब्रह्मांड का प्रमुख हिस्सा रही है। हमारे धर्म ग्रंथों, वेदों, पुराणों में कामधेनु गाय का उल्लेख मिलता है, जो संसार की प्रत्येक वस्तु प्रदान करने की क्षमता रखती थी। गरुड़ पुराण में भी गाय का जिक्र मिलता है। उसमें कहा गया है कि मृत्यु के पश्चात आत्मा को वैतरणी नदी पार करने की आवश्यकता होती है और उसने यदि जीवित रहते हुए गौ दान किया है तो वह गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार कर जाता है। तो आइये जानते हैं आखिर गाय का हिंदू धर्म, संस्कृति में इतना महत्व क्यों है। गाय को मां का दर्जा क्यों दिया है। गाय हमारे लिए पूजनीय क्यों है।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में कई जगह धरा पर अकाल पड़ने की बात कही गई है। प्राचीन काल में अनेक तरह के खाद्यान्न की इतनी उपलब्धता नहीं थी और न ही भोजन उतना व्यवस्थित नहीं था जितना आज है। घर में पाली जाने वाली गाय के दूध पर ही पूरा परिवार निर्भर करता था। अकाल की स्थिति में गाय का दूध प्राणों की रक्षा करता था। दूध पीकर मनुष्य जीवित रह लेता था। जिन बच्चों को मां स्तनपान नहीं करा पाती थी, उन बच्चों को भी गाय का दूध दिया जाता था, ताकि वे जीवित रह सकें। गाय का दूध आज भी नवजात बच्चों को पिलाया जाता है। इसलिए गाय को माता का दर्जा मिल गया।

वेदों में गाय को पूजनीय बताया गया है क्योंकि इसमें 33 कोटि यानी 33 प्रकार के देवताओं का वास माना गया है। इन 33 प्रकार के देवताओं में 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रूद्र और 2 अश्विन कुमार हैं। इसलिए केवल एक गाय की सेवा-पूजा कर लेने से 33 कोटि देवताओं का पूजन संपन्न हो जाता है। यही कारण है कि गौ दान भी संसार में सबसे बड़ा दान माना गया है।

गाय के शरीर में उत्पन्न होता है सोना

वैज्ञानिक शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि गाय ही एकमात्र ऐसी प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। इस लिहाज से यह पर्यावरण कोई जरा भी हानि नहीं पहुंचाती। गाय के आसपास होने पर आपको कफ, सर्दी, खांसी, संक्रामक रोग नहीं होते। गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थिति सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरणों को वातावरण से दूर करते हैं। इससे वातावरण शुद्ध होता है। वहीं यह बात वैज्ञानिक भी साबित कर चुके हैं कि सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य की किरणों के संपर्क में आने पर स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर में उत्पन्न यह सोना उसके दूध, मूत्र और गोबर में सूक्ष्म मात्रा में पाया जाता है। यही कारण है कि गाय का दूध पूर्ण पोषण करता है। इसके मूत्र और गोबर में अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने की क्षमता होती है।

गाय दान का महत्व

गरुड़ पुराण में वैतरणी नामक एक नदी का उल्लेख मिलता है। उसके अनुसार जब किसी मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा को स्वर्ग तक पहुंचने से पहले अपने कर्मों के अनुसार कई तरह के कष्टों से गुजरना पड़ता है। इनमें एक नदी आती है वैतरणी। इस नदी को पार करना आत्मा के लिए संभव नहीं होता है। यदि मनुष्य ने अपने जीवित रहते हुए गौ का दान किया है तो नदी पार करवाने के लिए वहां एक गाय उपस्थित होती है और आत्मा उसकी पूंछ पकड़कर नदी पार करती है। इसलिए कई लोग अपने परिजनों की मृत्यु के बाद उनके निमित्त गाय का दान करते हैं।

ये भी हैं गाय से जुड़ी खास बातें

गाय के दूध में रेडियो विकिरण रोकने की सर्वाधिक शक्ति होती है।

गाय का मस्तिष्क की कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करता है, जिससे याददाश्त बढ़ती है।

गाय के दूध में केरोटीन होता है जिससे आंखों की रोशनी बढ़ती है।

गाय का दूध दिल की बीमारियों को दूर करता है।

गाय के एक तोला घी से यज्ञ करने से एक टन ऑक्सीजन बनती है।

गाय की पीठ पर प्रतिदिन 10-15 मिनट हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर नॉर्मल हो जाता है।

क्षय रोगियों को गाय के बाड़े में या गौशाला में रखने से उसके गोबर की गंध से क्षय रोग और मलेरिया के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।